Friday 23 August 2013

दूर हूँ मजबूर हूँ

दूर  हूँ  मजबूर  हूँ 
शायद  में  बेकसुर   हूँ 

तेरी  यादें  दिल  में  घर  करी  हुई  है 
लेकिन  तेरी  नज़रों  में  चूर  चूर  हूँ 
दूर  हूँ  मजबूर  हूँ 

चाँद  बोला  में  भी  आशिक़  तू  भी  आशिक़ 
तो  फर्क  किस  बात  का 
में  बोल  तेरी  चाँदनी  तेरे  पास  है 
पर  में  उससे  थोडा  दूर  हूँ 
दूर  हूँ  मजबूर  हूँ 

पता  माँगा  मैंने   तेरा  हवा  से 
हवा  बोली  हम  मतलब  नहीं  रखते  बेवफा  से 
में  बोल  बेवफाई  तो  नज़रो  ने  की  तो  सजा  दिल  को  क्यों  मिले 
हवा  बोली  क्यों  काटी  वो  कलिया  जिनमे  चाहत  के  थे  फूल  खिले  

फिर  दोस्ती  बोली  खिला  दूंगी  ऐसी  कलिया ऐसा में दस्तूर हूँ 
में  बोला 
दूर  हूँ  मजबूर  हूँ 
शायद  में  बेक़सूर हूँ

Tuesday 13 August 2013

शहर

 रात  थी  और  मै  था 
आँखों  में  प्रलय  था 
रास्ते  भी  कोसने  लगे  थे  अब  तो 
शायद  ये  उसी  का  शहर  था

बदनाम  हुए  उस  नाम  से  जो  नाम  ही  गलत  था
वो  तो  सही  थी  पर  उसको  पाने  का  ख्वाब  ही  गलत  था
हँसते  हुए  चेहरे  तो  खूब  देखे  है
पर  उसके  मुस्कुराने  का  अंदाज़  अलग  था

दौड़ी  चली  आती  थी  वो  मेरी  साइकिल  की  आवाज  सुन  के
शायद  उन  दिनों  मेरा  भी  अंदाज़  अलग   था

समय  बदला , जहाँ  बदला , हम  बदले
बस  एक  सवाल  था
वो  सच  में  ऐसी  थी  की
बस  एक  नकाब  था