दूर हूँ मजबूर हूँ
शायद में बेकसुर हूँ
तेरी यादें दिल में घर करी हुई है
लेकिन तेरी नज़रों में चूर चूर हूँ
दूर हूँ मजबूर हूँ
चाँद बोला में भी आशिक़ तू भी आशिक़
तो फर्क किस बात का
में बोल तेरी चाँदनी तेरे पास है
पर में उससे थोडा दूर हूँ
दूर हूँ मजबूर हूँ
पता माँगा मैंने तेरा हवा से
हवा बोली हम मतलब नहीं रखते बेवफा से
में बोल बेवफाई तो नज़रो ने की तो सजा दिल को क्यों मिले
हवा बोली क्यों काटी वो कलिया जिनमे चाहत के थे फूल खिले
फिर दोस्ती बोली खिला दूंगी ऐसी कलिया ऐसा में दस्तूर हूँ
में बोला
दूर हूँ मजबूर हूँ
शायद में बेक़सूर हूँ