Saturday 16 November 2013

कुछ शेर

  • अब  तो  सांस  लेने  में  भी  डर  लगता  है
    कि  कुछ  ख्वाईशे  अभी  सोयी  है  कही  फिर  से  न जाग  जाये!! 
  • कि मरने के बाद भी वो मेरी कब्र के पास आकर लेट गये
    और हमको लगा था आगे का सफ़र अकेले ही तय करना पड़ेगा!! (मेरे उन दोस्तों के लिए जिन्होंने अब तक मेरा साथ दिया :) )
  • गमो से हाथ ना मिलते तो क्या करते
    तन्हाइयो में आँसु ना बहाते तो क्या करते
    यार ने कि थी रोशनी कि उम्मीद हमसे
    हम खुद को ना जलाते तो क्या करते!!
  • उनको जीना नहीं आता तो इसमें मेरी क्या गलती
    में तो बोतल लेकर उनके पास भी गया था!!
  • अक्सर अपने नाम से बुलाने पर भी जाना भूल जाते थे
    माँ से दूर होने का असर ही कुछ ऐसा था!!
  •  अरे रफ़्तार बहुत ज्यादा है संभालो खुद को
    आज कल अख़बार बहुत ज्यादा है संभालो खुद को!!
  • आज कल सब अपनी ज़ेबो में मरहम रखते है
    क्योकि आज कल कागज़ के टुकड़े भी आग लगाने का दम रखते है!!
  • खुदा ने हर मोड़ पे दो रस्ते दिए
    चुन ना भी खुद था और बनाना भी खुद !!
  • ना लड़ाई अच्छी लगती है ना खून अच्छा लगता है
    मुझे तो बस देश में सुकून अच्छा लगता है !!
  • एक टूट ता हुआ तारा मरते मरते मुझसे सच कह गया
    तुम एक दिन चैन कि नींद क्या सोये वो जालिम तुम्हारे सपने चुरा कर ले गया!!

Thursday 17 October 2013

अच्छा तेरा प्यार लगता है

अकेले  नींद  तो  नहीं  आती  पर  तुझको  सोच  के  सो  जाते  थे
जब  तेरी  याद  तडपाती  थी  तो  तेरा  चेहरा  याद  कर  के  मुस्कुराते  थे
अब  ये  क्या  है  हमको  क्या  पता
हम  तो  आज  भी  उस  रास्ते  पर  बैठे  है  जहाँ   से  तुम  आते  जाते  थे 

वो  तेरा  मुस्कुराते  हुए  जाना 
वो  तेरा  मुझसे  नज़ारे  चुराना 
वो  बरसात  के  दिनों  में  मेरे  पास  आके  खड़े  होजाना 
वो  मेरी  दी  हुई  चॉकलेट  हलके  हस्ते  हुए  खाना 

याद  आती  है  ये  बाते  तो  रो  जाता  हूँ 
आज  भी  उन  राहो  में  कही  खो  जाता  हूँ 
दिल  में  बस  अब  तेरी  याद  बाकि  है 
सब  कुछ  होगया  बस  अपना  साथ  बाकि  है 

अकेले  जीना  अब  दुश्वार  लगता  है 
अब  दुनिया  में  सच्चा  तेरा  प्यार  लगता  है 
बस  दुनिया  में  अच्छा  तेरा  प्यार  लगता  है

Wednesday 2 October 2013

भूल गया मुझे

ज़रूरत  के  समय , में  उसे  याद  था 
जब  आई  उसकी  बारी  वो  भूल  गया  मुझे 
खुशियों  में  वो  साथ  था
जब  आई  दुःख  की  बारी  वो  भूल  गया  मुझे 
सोचा  मिल  गया  यहाँ  जो  अपना  सा  लगे 
सारी  दुनिया  सो  जाये  तब  वो  मेरे  लिए  जगे 
लब  पर  हर  मुस्कान  हम  बाँटे 
दुःख  में  साथ  हो 
जब  कुछ  बोलना  चाहू  तब  मेरी  उससे  बात  हो 
रातो  की  नींद  हम  हस्ते  हुए  हराम  कर  दे
एक  दूजे  के  सफ़र  में  नए  रंग  भर  दे 

पर  भूल  गया  था  की  ये  कलयुग  है
यहाँ  अपना  मतलब  ही  सब  कुछ  है 
पर  एक  उम्मीद  है  की  शायद  एक  सवेरा  हो 
मेरे  जज्बातों  को  समझने  वाला  यहाँ  कोई  तो  हो 

ये  बात  आई  दिल  में  फिर याद  किया  तुझे 
पर  में  भूल  गया  था  की  तू  भूल  गया  मुझे


Thursday 19 September 2013

क्या लिखू

क्या  लिखू 
कि  66  साल  में  देश  इतना  बढ़  गया  है  कि 
एक  इंसान  को  दूसरा  इंसान  नहीं  दिखता
क्या  लिखू 
कि  जो  हाथ  कही  लग  जाये  तो  पत्थर  को  भी  सोना  कर  दे
आज  उन  हाथो  से  बना  माल  नहीं  बिकता 

क्या  लिखू 
कि  अब  घर  और  मकान  में  फर्क  नहीं  रहा
धरती  पे  एक  ही  तो  स्वर्ग  था  वो  स्वर्ग  नहीं  रहा  है 

क्या  लिखू 
कि  लाल  मिर्च  से  अब  नज़र  नहीं  उतर  ती  है
भिन्डी  की  सब्जी  अब  गले  से  नहीं  उतर  ती  है
अब  तो  खाना  हमको  खायेगा  ये  दिन  भी  आयेंगे 
भगवन  अब  धरती  पर  कब  आयेंगे ? 

क्या  लिखू
कि  अब  तो  सच्चा  प्यार  भी  फेसबुक  पे  मिलता  है
ईमान  जैसे  एक  पेड़  है  जो  हवा  के  साथ  हिलता  है 
घर  100*100  का  और  दिल  चींटी  से  भी  छोटा  है 
इतना  तो  अंग्रेजो  ने  नहीं  लूटा  जितना  कांग्रेस  ने  लूटा  है 

क्या  लिखू 
कि  हम  खुद  तो  नहीं  जागते  ना  दुसरो  को  जगाते  है 
एक  दुसरे  की  राह  में  बस  कांटे  बिछाते  है 
अब  तो  चप्पल  पहन  कर  भी  चुभन  महसूस  होती  है 
यहाँ  हर  प्रशन  का  जवाब  सिर्फ  घूस  होती  है 

अच्छा  तो  सब  लिखते  है 
सोचा  कुछ  सच्चा  लिखू 
पर  सोचता  ही  रह  गया 
क्या  लिखू  क्या  लिखू  क्या  लिखू

Friday 23 August 2013

दूर हूँ मजबूर हूँ

दूर  हूँ  मजबूर  हूँ 
शायद  में  बेकसुर   हूँ 

तेरी  यादें  दिल  में  घर  करी  हुई  है 
लेकिन  तेरी  नज़रों  में  चूर  चूर  हूँ 
दूर  हूँ  मजबूर  हूँ 

चाँद  बोला  में  भी  आशिक़  तू  भी  आशिक़ 
तो  फर्क  किस  बात  का 
में  बोल  तेरी  चाँदनी  तेरे  पास  है 
पर  में  उससे  थोडा  दूर  हूँ 
दूर  हूँ  मजबूर  हूँ 

पता  माँगा  मैंने   तेरा  हवा  से 
हवा  बोली  हम  मतलब  नहीं  रखते  बेवफा  से 
में  बोल  बेवफाई  तो  नज़रो  ने  की  तो  सजा  दिल  को  क्यों  मिले 
हवा  बोली  क्यों  काटी  वो  कलिया  जिनमे  चाहत  के  थे  फूल  खिले  

फिर  दोस्ती  बोली  खिला  दूंगी  ऐसी  कलिया ऐसा में दस्तूर हूँ 
में  बोला 
दूर  हूँ  मजबूर  हूँ 
शायद  में  बेक़सूर हूँ

Tuesday 13 August 2013

शहर

 रात  थी  और  मै  था 
आँखों  में  प्रलय  था 
रास्ते  भी  कोसने  लगे  थे  अब  तो 
शायद  ये  उसी  का  शहर  था

बदनाम  हुए  उस  नाम  से  जो  नाम  ही  गलत  था
वो  तो  सही  थी  पर  उसको  पाने  का  ख्वाब  ही  गलत  था
हँसते  हुए  चेहरे  तो  खूब  देखे  है
पर  उसके  मुस्कुराने  का  अंदाज़  अलग  था

दौड़ी  चली  आती  थी  वो  मेरी  साइकिल  की  आवाज  सुन  के
शायद  उन  दिनों  मेरा  भी  अंदाज़  अलग   था

समय  बदला , जहाँ  बदला , हम  बदले
बस  एक  सवाल  था
वो  सच  में  ऐसी  थी  की
बस  एक  नकाब  था