Tuesday 13 October 2015

गरमी की छुट्टियां

क्लास में बैठें  बैठें  जब मे बाहर देखता हूँ
वो मैदान मुझे ललचाता है
बार बार कहता है
मै अधुरा हूँ तुम्हारे बिना 

सुखा पडा रहता हे वो नल
जहाँ पानी पीने के लिए लडाईयां हो जाती थी
चुपचाप बैठी रहती हे वो अम्मा आजकल
जिसको अकसर हमारी गेंद छुपाने को मिल जाती थी
शायद वो भी मायूस हो गई है खाली मैदान की तरह

चुपचाप निकल जाता है वो चुस्की वाला भैया 
जिसकी घंटी की आवाज़ सुनकर खेल में अल्प विराम लग जाता था 

याद आती है मुझे वो बातें 
चुस्की खाते वक़्त 
उस बरगद के नीचे 
लू भी ठंडी शीतल हवा लगती थी जहाँ 
क्रिकेट पे वाद विवाद का वहाँ अलग ही मज़ा था 

पर अब गर्मियों की छुट्टियां खतम हो गई  है 
देख रहा हूँ में उस मैदान को अभी भी 
वो अभी भी मुझको बुला रहा हैं!

Sunday 4 October 2015

भगवान

तू इतनी सुंदर है , शायद ही तुझसा कोई हो
तू माँ हैं , शायद ही तुझसा कोई हो

तेरे जीने की वज़ह तेरा परिवार होता हैं
तुझे कैसे सबसे इतना प्यार होता है ?
खुद को तू वक़्त कभी देती नहीं
अपनों के ख़िलाफ़ कुछ सहती नहीं

माँ तुझ जैसा बनना असंभव सा लगता हैं
किसी से इतना प्यार पाना सपना लगता हैं

इतना बड़ा दिल की दुनिया समां जाये
इतना त्याग सबके लिया की तुजे भगवान कहा जाये

अपने हर हाल को तू ठीक कहती हैं
हमारे लिए मुश्किलें तू हँस कर सह लेती हैं
माँ तू एक अजूबा हैं ये बात मैंने मान ली हैं
तू धरती पे भगवान का रूप है ये बात मैंने जान ली हैं!