Tuesday 13 August 2013

शहर

 रात  थी  और  मै  था 
आँखों  में  प्रलय  था 
रास्ते  भी  कोसने  लगे  थे  अब  तो 
शायद  ये  उसी  का  शहर  था

बदनाम  हुए  उस  नाम  से  जो  नाम  ही  गलत  था
वो  तो  सही  थी  पर  उसको  पाने  का  ख्वाब  ही  गलत  था
हँसते  हुए  चेहरे  तो  खूब  देखे  है
पर  उसके  मुस्कुराने  का  अंदाज़  अलग  था

दौड़ी  चली  आती  थी  वो  मेरी  साइकिल  की  आवाज  सुन  के
शायद  उन  दिनों  मेरा  भी  अंदाज़  अलग   था

समय  बदला , जहाँ  बदला , हम  बदले
बस  एक  सवाल  था
वो  सच  में  ऐसी  थी  की
बस  एक  नकाब  था

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