Wednesday 2 October 2013

भूल गया मुझे

ज़रूरत  के  समय , में  उसे  याद  था 
जब  आई  उसकी  बारी  वो  भूल  गया  मुझे 
खुशियों  में  वो  साथ  था
जब  आई  दुःख  की  बारी  वो  भूल  गया  मुझे 
सोचा  मिल  गया  यहाँ  जो  अपना  सा  लगे 
सारी  दुनिया  सो  जाये  तब  वो  मेरे  लिए  जगे 
लब  पर  हर  मुस्कान  हम  बाँटे 
दुःख  में  साथ  हो 
जब  कुछ  बोलना  चाहू  तब  मेरी  उससे  बात  हो 
रातो  की  नींद  हम  हस्ते  हुए  हराम  कर  दे
एक  दूजे  के  सफ़र  में  नए  रंग  भर  दे 

पर  भूल  गया  था  की  ये  कलयुग  है
यहाँ  अपना  मतलब  ही  सब  कुछ  है 
पर  एक  उम्मीद  है  की  शायद  एक  सवेरा  हो 
मेरे  जज्बातों  को  समझने  वाला  यहाँ  कोई  तो  हो 

ये  बात  आई  दिल  में  फिर याद  किया  तुझे 
पर  में  भूल  गया  था  की  तू  भूल  गया  मुझे


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