Sunday 28 June 2015

थोडा़ गुस्सा थोड़ी नाराज़गी !!

सितारों तक जाने की सड़क नही मिलती
मुझे अपने अंदर की तड़प नही मिलती
रोज मुंह फेर के चली जाती है वो
मुझे उसकी नफ़रत की जड़ नही मिलती 

कहना वो भी चाहती है बहुत कुछ सबसे
पर इस समाज से लडने की उसकी हिम्मत नही होती

बेबस हो के रह जाते है लोग याहां पे धर्म के नाम पे 
आतंकवादी बनने की हमे ज्यादा ओप्पोर्तुनिटी नहीं मिलती

अमीरो की दिक्कतें शायद ज्यादा बडी होती होगी 
तब ही तो गरीबों की सुनने के लिए किसी को फुर्सत नहीं मिलती 

कलम से क्रांति लाने वाले दिन शायद चले गऐ 
इन बुझे हुए लोगो मे शायरी की किमत नही मिलती 

उन तीन चार लोगो के सामने रो लिया करता हु मै
कुछ लोग हैं जिन्हें मेरे गमो मे खुशी नही मिलती 


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